Bhagat Singh ko fansi ki saza kyun mili thi: देश के लिए त्याग और बलिदान की मिसाल थे शहीद भगत सिंह
Bhagat Singh ko fansi ki saza kyun mili thi : आज भारत एक आजाद मुल्क के रूप में खड़ा है इसके पीछे ना जाने कितने वीर सपूतों का लहू बहा है अंग्रेजो से भारत को आजाद कराने के किए स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक भारत के वीरों ने अपनी जान न्यौछावर की है उनमें से एक वीर भगत सिंह भी थे । भारत में हर साल 23 मार्च का दिन शहीद के रूप में मनाया जाता है। देश की आजादी के लिए तीन वीर सपूतों ने हसंते हंसते अपनी जान देश के लिए कुर्बान कर दी । भगत सिंह ने अपनी गरिमा शहादत और आंदोलित विचारों से देश व दुनिया को एक सन्देश दिया की इस क्रांतिकारी आंदोलन के पीछे उनका मकसद एक अंधा राष्ट्रवाद नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना थी। अगर आप देखें तो आजादी के चार दशक बाद तक शहीद भगत सिंह के विचार और उनसे जुड़े तमाम दस्तावेज देश की जनता तक नहीं पहुंच पाए । आज भी देश की तमाम युवा पीढ़ी उनके आंदोलित और राष्ट्रवादी विचारो से अपरिचित है भगत सिंह के विचार और उनकी क्रांतिकारिता को समझने के लिए उन्होंने जो जेल में रहकर खत और लेखों को पढ़ना और समझना जरूरी है तभी आपको पता चलेगा आखिर भगत सिंह क्या थे। भगत सिंह कभी रक्तरंजित के पक्षधर कभी नहीं थे। साल 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए प्रदर्शन मे भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों ब्रिटिश हुकूमत ने लाठियां चलवाई थी जिसमे लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल हुए और आखिरकार उनकी मृत्यु हो गई । इसमें कोई शक नहीं की भगत सिंह एक समाजवाद और मानववाद के पोषक थे । ब्रिटिश हुकूमत जब भी भारतीयों पर अत्याचार करती भगत सिंह उनका विरोध करते थे। भगत सिंह ब्रिटिश हुकूमत की चाल को अच्छी तरह समझते थे वो बिल्कुल नहीं चाहते थे कि ब्रिटिश संसद से मजदूर विरोधी नीतियां पारित हो । यह एक सच्चे राष्ट्रभक्त की निशानी है उनका मानना था कि ब्रिटिश हुकूमत सब समझ जाए कि हिन्दुस्तानी जाग चुके है वे अब और गुलामी नहीं सहन कर सकते ।
Fansi par jhule teen veer sapoot
अंग्रेजो के एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स की हत्या के आरोप में 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत के कहने पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव फांसी पर लटका दिया गया । हालाकि यह फांसी 24 मार्च 1931 को दी जानी थी लेकिन इन तीनों के बुलंद हौसले से भयभीत ब्रिटिश हुकूमत ने जन आंदोलन को कुचलने के लिए एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को फांसी देने का फरमान जारी कर दिया। भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत को लगभग 90 वर्ष पूरे हो चुके है लेकिन भारतीय जनमानस को रोमांचित करने वाली अविस्मरणीय पराक्रम की तमाम गाथाएं आज भी ताजा है 28 सितम्बर 1907 को जन्मे भगत सिंह जब 23 साल के थे तो उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल मे वैचारिक क्रांति की मशाल जलाई थी। जिससे आज के कई युवा प्रभावित है ।भगत सिंह की उम्र जब पांच साल की थी तो एक दिन वह अपने पिता के साथ खेत पर गए । और वहां कुछ तिनके चुनकर जमीन मे गाड़ने लगे । पिता ने पूछा भगत तुम ये क्या कर रहे हो तब भगत सिंह ने कहा मै खेत में बंदूके बो रहा हूं । जब यह सारी बन्दूक बड़ी हो जाएंगी तो अंग्रेजो के खिलाफ इनका उपयोग करेंगे। 24 अगस्त 1908 को पुणे के खेड़ा में जन्मे राजगुरु छत्रपति शिवाजी की शैली के प्रशंसक थे । राजगुरु ने पुलिस की बर्बर लाठीचार्ज के कारण दिग्गज नेता लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए 19 दिसंबर को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर मे पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स की गोली मारकर हत्या जर दी थी और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया था
Jab bhesh badalkar bhagat Singh ne chakma diya
Bhagat Singh ko fansi ki saza kyun mili thi: एक बार भगत सिंह भेष बदलकर कोलकाता से निकल गए और उन्होंने बम बनाने की विधि सीखी । क्योंकि भगत सिंह बिना कोई खून खराबा किए अपनी आवाज ब्रिटिश हुकूमत तक पहुंचना चाहते थे । लेकिन भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को यह पता चल गया था कि पराधीन भारत की बेडिया केवल अहिंसा की नीतियों ने नहीं काटी जा सकती । तभी तीनों क्रांति करियो ने सोचा कि कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे ब्रिटिश हुकूमत हिन्दुस्तानियों पर ज्यदती न करें ब्रिटिश हुकूमत उस समय मजदूरों के खिलाफ संसद में नीतियां पारित करने वाली थी तब भगत सिंह ने लाहौर के केंद्रीय असेम्बली मे बम फेकने की योजना बनाई । इसके बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व पर पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड दिप्युट बिल के विरोध में सेंट्रल असेम्बली में पूरी योजना के साथ बम फेकने के लिए 1929 में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की एक बैठक हुई । फिर पूरी योजना के जरिए भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929, को बटुकेश्वर दत्त के साथ असेम्बली मे एक खाली जगह पर बम फेंक दिया । और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । भगत सिंह चाहते थे भाग सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया । उनका मानना था कि गिरफ्तार होकर बेहतर तरीके से अपना सन्देश दे पाएंगे। बमों के साथ कई कागज के पर्चे भी भगत सिंह ने फेंके थे जिसमे लिखा था आदमी को मारा जा सकता है उनके विचारों को नहीं ।
Pakistan me Zinda hai bhagat Singh ke vichar
भारत और पाकिस्तान की आजादी मे बस एक दिन का फर्क है । सात दशक बीतने के बाद भी आज भारत और पाकिस्तान एक दूसरे को कट्टर दुश्मन की तरह देखते है दोनों के बीच कई बार जंग भी हुई । मतलब कहने का कभी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध दोनों देशों के बीच नहीं रहे । खट्टे और मीठे रिश्ते चलते रहे हैं हालाकि भगत सिंह एक ऐसी शख्सियत है जिन्हे दोनों देशों की आवाम आदर भाव देती है भगत सिंह भारत के नायक तो है ही साथ ही पाकिस्तान में बहुत आदर से देखे जाते है । इसलिए उनके अलावा कोई दूसरी शख्सियत नहीं नजर आती । पाकिस्तान के लाहौर और कुछ अन्य जगहों पर भगत सिंह का जन्म और शहीद दिवस मनाया जाता है पाकिस्तान में कई ऐसे संगठन रहे है जो भगत सिंह को नायक घोषित करने मे तुले रहे है उनके विचारों से प्रेरणा लेते है पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में तो भगत सिंह का सम्मान अधिक होता है आपको बता दें की उनके रहते कभी भी मुस्लिम लीग ने अलग देश की मांग नहीं की थी साल 1940 के बाद मुस्लिम लीग ने पहली बार अलग देश और पाकिस्तान बनाने की मांग की थी । 23 मार्च 1940 को पाकिस्तान बनने का प्रस्ताव उसी जगह पारित हुआ जहां भगत सिंह को फांसी दी गई थी । कुछ जानकर मानते है कि अगर भगत सिंह उस समय कुछ और साल जिंदा होते थे शायद तस्वीर कुछ और होती ।