कांग्रेस को इंदिरा गांधी ने दिलाया था चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा
Indira Gandhi ne kaise dilaya hath ka panja: कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी राजनीति परियों में से एक है। जिसने आजादी के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव सिर्फ अपनी पार्टी के झंडे के बलबूते चुनाव लडा और जीता भी। लेकिन क्या आपको पता है कि आज झंडे में जो हाथ का पंजा दिखाई देता है। वो कैसे और किसने दिलाया। तो चलिए जानते है। इंदिरा गांधी को आप भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बेशक कह सकते है लेकिन इंदिरा गांधी को आज भी 25 जून 1975 को लगाए गए देश में आपातकाल के लिए भी जाना जाता है । साल 1977 में क्या कोई सोच सकता था कि आपातकाल का दंश झेल चुका देश इंदिरा गांधी को दोबारा मौका देगा । देश के तमाम बुजुर्ग पुरुष और महिला इमरजेंसी में लाठियां खाई हो। उनके बच्चे तक न बचे हो । जेल की कोठरी के अंदर होने वाली ज्यादतियों को जिसने सहा हो वह कैसे भुल सकता है । कहते है कि लोकतंत्र में जनता की याददाश्त कमजोर होती है करीब पौने तीन साल बाद जनता ने सबकुछ दिया और इंदिरा गांधी को 1971 जैसी बड़ी जीत उनकी झोली में डाल दी । लेकिन आखिर यह सब हुआ कैसे । इसे समझना जरूरी है । जब साल 1977 मे आम चुनाव हुआ तो सभी को पता था कि देश में इंदिरा गांधी ने कैसे देश की जनता के साथ बर्बरता की थी । जनता कुछ नहीं भूली और इंदिरा सरकार की बैंड बजा दी । तब इनका चुनाव चिन्ह गाय और बछड़े था इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने दोनों को जोड़कर प्रसारित किया । इससे कांग्रेस का माहौल और खराब हुआ। इतना ही नहीं कांग्रेस के अंदर इंदिरा और यशवंत राव के बीच संघर्ष छिड़ गया । जनता के प्रति कांग्रेस का आक्रोश जगजाहिर था कांग्रेस हार गई।
Hath ka panja kaise Indira Gandhi ke liye sanjivni bna
साल 1977 मे कांग्रेस से निष्काषन के बाद इंदिरा गांधी ने 1 जनवरी 1978 को खुद की कांग्रेस खड़ी की । नाम रखा गया कांग्रेस संक्षेप में इंका । नई पार्टी का चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन हुआ तब चुनाव आयोग ने इंका को तीन चुनाव चिन्ह विकल्प दिए । हाथी , साईकिल और पंजा । दूसरी तरफ नई पार्टी खड़ी कर इंदिरा गांधी ने देश में दौरे करने लगी । दिल्ली में पार्टी को संभालने और उसका काम जैसे चुनाव आयोग, कार्यक्रम, प्रेस ब्रीफिंग , और अन्य एजेंडा देखने के लिए । इंदिरा ने तीन नेताओं को महासचिव बनाकर तैनात किया। इसमें प्रणव मुखर्जी, भीष्म नारायण सिंह, और बूटा सिंह थे । चुनाव चिन्ह तय करने के लिए चुनाव आयोग ने इंका को बुलाया । इंदिरा गांधी उस समय पीवी नरसिम्हा राव के साथ आंध्र प्रदेश दौरे पर थी । बूटा सिंह चुनाव आयोग गए तो अधिकारियों मे कहा कि चुनाव चिन्ह बताओ तब बूटा ने कहा मैं नहीं बता सकता यह इंदिरा मैडम बताएंगी । बूटा ने फोन किया तो तकनीकी खराबी के चलते आवाज में दिक्कत हो रही थी तब इंदिरा ने पीवी नरसिम्हा राव को फोन दिया बोले बात करो, बूटा सिंह ने चुनाव चिन्ह ने बारे में बताया , कट कट की आवाज में पीवी नरसिम्हा राव ने पंजा पर सहमति दे दी ।तब बूटा सिंह ने चुनाव आयोग को बताया कि इंका को पंजा चुनाव चिन्ह मिल गया ।
panja Milne ki dusri rochak kahani kya hai
साल 1977 के हार के बाद इंदिरा को पार्टी से निकाला गया। शाह कमीशन और कोर्ट कचहरी के चक्कर से परेशान होकर इंदिरा गांधी टोना टोटका पर भरोसा करने लगी । इंदिरा तांत्रिको और धर्मगुरुओं के पास जाने लगी । एक दिन इंदिरा गांधी कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के पास गई । इंद्रा की पूरी बात शंकराचार्य ने बड़ी गौर से सुना । इसके बाद उन्होंने अपना हाथ उठा दिया तथास्तु की मुदा में था। फिर इंदिरा गांधी ने उस तथास्तु मुद्रा वाले हाथ को अपना चुनाव चिन्ह फ्रीज कर दिया । फिर आवेदन करने पर इसी चिन्ह को मान्यता दी । हाथ के पंजे को चुनाव चिन्ह के रूप में इंदिरा का चुनावी नारा रहा । इसके बाद इंदिरा गांधी की किस्मत को नए पंख मिल गए । आपसी कलह के चलते जनता पार्टी की सरकार गिर गई । फिर चौधरी चरण सिंह की सरकार से अपना समर्थन इंदिरा गांधी ने वापस लिया । फिर समय से पहले बीच में ही चुनाव की नौबत आ गई । साल 1979/80 के चुनाव में तीन लोगों के बीच लड़ाई थी । पहली चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली जनता पार्टी दूसरी तरह चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर ,और तीसरी धुरी बन रही थी इंदिरा गांधी की इंका पार्टी । तब इमरजेंसी के बाद इंदिरा गांधी की वापसी हुई और सातवीं लोकसभा चुनाव जीत लिया था 14 जनवरी 1980 यानी मकर संक्रांति के दिन इंदिरा देश देश की सत्ता संभाली । तब हाथ का पंजा इंदिरा गांधी के लिए भाग्यशाली रहा इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने कभी चुनाव चिन्ह नहीं बदला ।